Monday, April 18, 2011

Kaash ,my words from safroon heart BY ANSH

                         कागज की संज्ञा

 

कोरा हु में अभी लेखन  का आभारी

भटका  हु में  कोई कश्ती बंजारी

अधूरे से है किसी लेखक के खवाब

प्रष्टो पे छिपे है किसी हस्ती  के जज्बात

विचारो के कमरे में होती है कोई बात

इस बरबस दुनिया को देख कर रूती है कागज की आँख

 

रंगों से सजी है खबरे हजार पर लेती है रिश्वत ये झोली उधार

शब्दों में भिखरी है किस्मत निखार पर पैसा  ही बोला हु में रद्दी बेकार

 

अभी कोरा हु में अभी लेखन का आभारी  पर भटका हु में ये कश्ती बंजारी !!!!
!!

                                         =अंश