भीख माँगते, बोझ ढोते
कचडा बीनते,
कपडा बूनते
गंदे मटमैले चीथडो मे
कभी घृणा से,
कभी करुणा से,
देखा होगा तुमने मुझे अनजाने मे
कुछ ने देनी चाही मुझे शिक्षा,
कुछ ने आगे बढकर की मेरी रक्षा.
बना दिए कानून मेरी हित मे
लगा दी पाबंदी मेरे काम मे
निस्वार्थ सहायता से अपनी
बचाना चाहा मेरा बचपन.
बाल शोषण के विरोध मे
चलाई सशक्त लहर क्रांति की.
देख प्रेम, छलकी आँखें
आशा पा, अरमाँ जागे
पर , प्रसन्नता के नभ पर
छाए दुविधा के बादल
एक जन के नाममात्र वेतन से
मिलता नही भोजन एक वक्त का
पिता के इन्ही दायित्त्वो को बाँटने का
सपना अधूरा रह जाएगा.
है नही देह ढाँकने को वस्त्र
है नही सिर छिपाने को छत
गुजर रहा जीवन अभावो मे
सड रहा तन तनावो मे
पिता की कैसे मदद करुँ?
माँ की पीडा कैसे दूर कँरु?
बहन को कैसे विदा कँरु?
भाई को कैसे सक्षम कँरु?
है यही जीवन का लक्ष्य
बनूँ परिवार का आधार
करने अपने सपनो को साकार
बनना ही होगा मुझे बाल मजदूर