Wednesday, June 6, 2012

बनना ही होगा मुझे बाल मजदूर















बाल मजदूर होटलो मे काम करते सडको पर गाडी धोते ...
 भीख माँगते, बोझ ढोते कचडा बीनते, 
कपडा बूनते गंदे मटमैले चीथडो मे कभी घृणा से, 
कभी करुणा से,
 देखा होगा तुमने मुझे अनजाने मे कुछ ने देनी चाही मुझे शिक्षा,

 कुछ ने आगे बढकर की मेरी रक्षा. बना दिए कानून मेरी हित मे लगा दी पाबंदी मेरे काम मे निस्वार्थ सहायता से अपनी बचाना चाहा मेरा बचपन. बाल शोषण के विरोध मे चलाई सशक्त लहर क्रांति की. 

देख प्रेम, छलकी आँखें आशा पा, अरमाँ जागे पर , प्रसन्नता के नभ पर छाए दुविधा के बादल एक जन के नाममात्र वेतन से मिलता नही भोजन एक वक्त का पिता के इन्ही दायित्त्वो को बाँटने का सपना अधूरा रह जाएगा. 
 है नही देह ढाँकने को वस्त्र है नही सिर छिपाने को छत गुजर रहा जीवन अभावो मे सड रहा तन तनावो मे पिता की कैसे मदद करुँ? 
 माँ की पीडा कैसे दूर कँरु? बहन को कैसे विदा कँरु? 
 भाई को कैसे सक्षम कँरु? है यही जीवन का लक्ष्य बनूँ परिवार का आधार करने अपने सपनो को साकार बनना ही होगा मुझे बाल मजदूर

असहाय सत्ता भिखारी




                                         असहाय    सत्ता   भिखारी




जब चौराहे पर कोई भिखारी भीख मांगता है उसके अलावा सब है अमीर यही बात जानता है

कोई बिना एक रूपए दिए निकल जाता है की उस एक रूपए से उसका क्या भला हुआ जाता है ...

जब बम धमाको में कोई विधवा अपना सिंदूर उजाडती है सिर्फ वो है अभागन यही बात मानती है
 कुछ कहते है सर्कार दुःख दर्द जानती है इसीलिए लाखों का मुआवजा बांटती है

 जब किसी अपराधी की सजा में २० साल लग जाते है पीड़ित तब भी कहता है हम संविधान मानते है
 उसके कई साल सिर्फ उम्मीद में में गुजर जाते है जहाँ से चले थे खुद को वहीँ खड़ा पाते है
 जब किसी बेरोजगार के तलवे घिस चुके होते है इस साल सरकार कुछ करेगी यही शब्द उसके मुख पर होते है

 दुनिया की झंझावतों से लड़ना सीख नहीं पाते है और एक दिन वो खुद को हम से बहुत दूर कर जाते है

 क्या हम इतने निरीह और असहाय हो गये है अभी जाग रहे है या सो गये है
 क्या अब हम अतीत से कुछ सीख रहे है या सत्ता बेगैरतों को देकर निश्चिन्त हो गये है
 सब कुछ होते हुए भी भिखारी का पेट नहीं भर सकते किसी को अनायास विधवा बनने से रोक नहीं सकते

 किसी सताए हुए की इन्साफ नहीं दिला सकते या किसी बेरोजगार की रोटी का इंतजाम नहीं कर सकते ये बात जो मुझे सालती है खुद से या शायद हम सब से यही जवाब मांगती है

ये भूक इन्सान कि













डाइनिंग टेबल पर खाना देखकर बच्चा भड़का फिर वही सब्जी,रोटी और दाल में तड़का....?
 मैंने कहा था न कि मैं पिज्जा खाऊंगा रोटी को बिलकुल हाथ नहीं लगाउंगा ...
 बच्चे ने थाली उठाई और बाहर गिराई.......? -------
 बाहर थे कुत्ता और आदमी दोनों रोटी की तरफ लपके .......?
 कुत्ता आदमी पर भोंका आदमी ने रोटी में खुद को झोंका और हाथों से दबाया कुत्ता कुछ भी नहीं समझ पाया

उसने भी रोटी के दूसरी तरफ मुहं लगाया दोनों भिड़े जानवरों की तरह लड़े एक तो था ही जानवर,
 दूसरा भी बन गया था जानवर.....
 आदमी ज़मीन पर गिरा, कुत्ता उसके ऊपर चढ़ा कुत्ता गुर्रा रहा था और अब आदमी कुत्ता है
या
 कुत्ता आदमी है कुछ भी नहीं समझ आ रहा था नीचे पड़े आदमी का हाथ लहराया,
हाथ में एक पत्थर आया कुत्ता कांय-कांय करता भागा........
आदमी अब जैसे नींद से जागा हुआ खड़ा और लड़खड़ाते कदमों से चल पड़ा.....
 वह कराह रहा था रह-रह कर हाथों से खून टपक रहा था बह-बह कर आदमी एक झोंपड़ी पर पहुंचा....... झोंपड़ी से एक बच्चा बाहर आया और ख़ुशी से चिल्लाया आ जाओ, सब आ जाओ बापू रोटी लाया,
 देखो बापू रोटी लाया, देखो बापू रोटी लाया.............