Wednesday, June 6, 2012

असहाय सत्ता भिखारी




                                         असहाय    सत्ता   भिखारी




जब चौराहे पर कोई भिखारी भीख मांगता है उसके अलावा सब है अमीर यही बात जानता है

कोई बिना एक रूपए दिए निकल जाता है की उस एक रूपए से उसका क्या भला हुआ जाता है ...

जब बम धमाको में कोई विधवा अपना सिंदूर उजाडती है सिर्फ वो है अभागन यही बात मानती है
 कुछ कहते है सर्कार दुःख दर्द जानती है इसीलिए लाखों का मुआवजा बांटती है

 जब किसी अपराधी की सजा में २० साल लग जाते है पीड़ित तब भी कहता है हम संविधान मानते है
 उसके कई साल सिर्फ उम्मीद में में गुजर जाते है जहाँ से चले थे खुद को वहीँ खड़ा पाते है
 जब किसी बेरोजगार के तलवे घिस चुके होते है इस साल सरकार कुछ करेगी यही शब्द उसके मुख पर होते है

 दुनिया की झंझावतों से लड़ना सीख नहीं पाते है और एक दिन वो खुद को हम से बहुत दूर कर जाते है

 क्या हम इतने निरीह और असहाय हो गये है अभी जाग रहे है या सो गये है
 क्या अब हम अतीत से कुछ सीख रहे है या सत्ता बेगैरतों को देकर निश्चिन्त हो गये है
 सब कुछ होते हुए भी भिखारी का पेट नहीं भर सकते किसी को अनायास विधवा बनने से रोक नहीं सकते

 किसी सताए हुए की इन्साफ नहीं दिला सकते या किसी बेरोजगार की रोटी का इंतजाम नहीं कर सकते ये बात जो मुझे सालती है खुद से या शायद हम सब से यही जवाब मांगती है

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