Wednesday, May 2, 2018

कुछ बदला अगर तो बस में

*तेरी बुराइयों* को हर *अख़बार* कहता है,
और तू मेरे *गांव* को *गँवार* कहता है   //

*ऐ शहर* मुझे तेरी *औक़ात* पता है  //
तू *चुल्लू भर पानी* को भी *वाटर पार्क* कहता है  //

*थक*  गया है हर *शख़्स* काम करते करते  //
तू इसे *अमीरी* का *बाज़ार* कहता है।

*गांव*  चलो *वक्त ही वक्त*  है सबके पास  !!
तेरी सारी *फ़ुर्सत* तेरा *इतवार* कहता है //

*मौन*  होकर *फोन* पर *रिश्ते* निभाए जा रहे हैं  //
तू इस *मशीनी दौर*  को *परिवार* कहता है //

जिनकी *सेवा* में *खपा*  देते थे जीवन सारा,
तू उन *माँ बाप*  को अब *भार* कहता है  //

*वो* मिलने आते थे तो *कलेजा* साथ लाते थे,
तू *दस्तूर*  निभाने को *रिश्तेदार* कहता है //

बड़े-बड़े *मसले* हल करती थी *पंचायतें* //
तु  अंधी *भ्रष्ट दलीलों* को *दरबार*  कहता है //

बैठ जाते थे *अपने पराये* सब *बैलगाडी* में  //
पूरा *परिवार*  भी न बैठ पाये उसे तू *कार* कहता है  //

अब *बच्चे* भी *बड़ों* का *अदब* भूल बैठे हैं //
तू इस *नये दौर*  को *संस्कार* कहता है  *.//*

Monday, December 2, 2013

बहुत याद आता है "बेहना " तुम्हारा मुझे "भाई" कहके बुलाना

dedicated to my sister lovee  today i try to joined some beautiful memories i have with my sister in my words  i hope  my blog kaash my words from saffron heart will definitely touch ur heart again .,,.,,.,.,.,






वो  मद्धम  सा  मुस्कुराना  और  वो  झूठ-मूठ  का  गुस्सा  दिखाना,
समझना  मेरी  हर  बात  को  और  मुझे  हर  बात  समझाना,
वो  लड़ना  तेरा  मुझसे  और  फिर  प्यार  जताना
बहुत  याद  आता  है  " लवी  तुम्हारा  मुझे  " भाई" कहके बुलाना,



वो  शाम  ढले  करना  बातें  मुझसे  और  अपनी  हर  बात  मुझे  बताना,
सुनके  मेरी  बेवकूफियां  तुम्हारा  ज़ोर  से  हंस  जाना,
मेरी  हर  गलती  पे  लगाना  डांट  और  फिर  मेरा  तुमको  मनाना ,
कोई  और  न  होगा  तुमसे  प्यारा  मुझे  यह  आज  मैंने  है  जाना,


वो  राखी  और  भाई-दूज  पे  तुम  से  सबसे  आखिर  मे  टीका  लग  वाना
कुमकुम  मैं  डूबी  ऊँगली  से  मेरा  माथा  सजाना, ओर्  हस्  कर  तुमसे  केह्ना  कि  टिका  छोटा लगाना
खिलाना  मुझे  मिठाई  प्यार  से  और  दिल  से  दुआ  दे  जाना,
बाँध के  धागा  कलाई  पे  मेरी  अपने  प्यार  को  जताना,


कभी  बन  जाना  माँ  मेरी  और  कभी  दोस्त  बन  जाना,
कभी  करना  होमेवोर्क्  मेरा  ओर्  छुपाना  फोन  मेरा
देना  नसीहतें  मुझे  और  हिदायतें  दोहराना,
जब  छाये  गम  का  अँधेरा  तोः  खुशी  की  किरण  बनके  आना,
हाँ  तुम्ही  से  तोः  सिखा  है  मैंने  गम  मैं  मुस्कुराना,


कहता  है  मन  मेरा  रहके  दूर  तुमसे  मुझे  अब  एक लम्हा  भी  नही  बिताना,
अब  बस "अन्श्  को  तोः  है  अपनी "बेहना  के  पास  है  जाना,
हैं  बहुत  से  एहसास  दिल  मैं  समाये  पता  नही  अब  इन्हे  कैसे  है  समझाना,
बस  जान  लो  इतना  "लवी "  बहुत  याद  आता  है  तुम्हारा  "भाई"  कहके  बुलाना

Monday, November 4, 2013

confessions of bound soul =-_dedicated to my all brothers



Confessions of a Bound Soul
















Brother, my brother, 
How selfish was I
While you seemed to struggle,
I sat idly by

Brother, my brother
Yes, try as I might
I now realize
It was also my fight

Brother, my brother
Now look at your arm
It's cold and immovable
Lost all its charm

Brother, my brother
Now look at your leg
There's so much left missing
Yet not once did you beg

Brother, my brother
Though I lost more in mass
It is you far more haunted
By our mistakes in the past

Brother, dear brother
Listen when I say
I will stick by your side
Until this goes away

Brother, dear brother
Listen when I say
I will stick by your side
Until our final day


Posted by Picasa

Wednesday, November 28, 2012

मे कभी इन्सान था

                        मे कभी इन्सान था 

 

 बस्ती में कोई  मर गया  है
चारों  तरफ शोर  गुल है
कोई अकेला ,खामोश टूटा हुआ ,
छाती में लिए ज़माने की ठोकरे
किसी अँधेरी कोठरी में रहा करता था !
तनहा -तनहा रोया करता था !
यहाँ से वहा ,वहा से यहाँ ,
उन तमाम उपहास ,उपेशा को झेल कर
कोठरी में चक्कर लगता ,
अपने  अस्तित्वा के नकार  की घुतन को
तरह तरह के तर्कों से ढका करता
अकसर खिड़की के किसी कोने से अपनी बेबसी को निहारता
कभी भुजते  हुए दिए की लपट से अपनी तुलना करता
सोचा करता सब ख़तम होता जा रहा है
अब किसी को उसकी जरुरत नही
हर गली हर दरवाजे खटकखटक कर
झुके कंधो का भोज लिए फिर लोट आया उस अंधेर नगरी में
जहा ख्जोया था वजूद उसका ,
अब गुमनामी में नाम था जिसका
थका हरा  वो ये जुंग भी हर गया
सब ने  पुछा  क्या नाम था उसका
बेबस होकर धरती बोली
मूर्खो ये तो बस ईमान था
अपनी रूह से पुचो की कब तू इन्सां था

Wednesday, June 6, 2012

बनना ही होगा मुझे बाल मजदूर















बाल मजदूर होटलो मे काम करते सडको पर गाडी धोते ...
 भीख माँगते, बोझ ढोते कचडा बीनते, 
कपडा बूनते गंदे मटमैले चीथडो मे कभी घृणा से, 
कभी करुणा से,
 देखा होगा तुमने मुझे अनजाने मे कुछ ने देनी चाही मुझे शिक्षा,

 कुछ ने आगे बढकर की मेरी रक्षा. बना दिए कानून मेरी हित मे लगा दी पाबंदी मेरे काम मे निस्वार्थ सहायता से अपनी बचाना चाहा मेरा बचपन. बाल शोषण के विरोध मे चलाई सशक्त लहर क्रांति की. 

देख प्रेम, छलकी आँखें आशा पा, अरमाँ जागे पर , प्रसन्नता के नभ पर छाए दुविधा के बादल एक जन के नाममात्र वेतन से मिलता नही भोजन एक वक्त का पिता के इन्ही दायित्त्वो को बाँटने का सपना अधूरा रह जाएगा. 
 है नही देह ढाँकने को वस्त्र है नही सिर छिपाने को छत गुजर रहा जीवन अभावो मे सड रहा तन तनावो मे पिता की कैसे मदद करुँ? 
 माँ की पीडा कैसे दूर कँरु? बहन को कैसे विदा कँरु? 
 भाई को कैसे सक्षम कँरु? है यही जीवन का लक्ष्य बनूँ परिवार का आधार करने अपने सपनो को साकार बनना ही होगा मुझे बाल मजदूर

असहाय सत्ता भिखारी




                                         असहाय    सत्ता   भिखारी




जब चौराहे पर कोई भिखारी भीख मांगता है उसके अलावा सब है अमीर यही बात जानता है

कोई बिना एक रूपए दिए निकल जाता है की उस एक रूपए से उसका क्या भला हुआ जाता है ...

जब बम धमाको में कोई विधवा अपना सिंदूर उजाडती है सिर्फ वो है अभागन यही बात मानती है
 कुछ कहते है सर्कार दुःख दर्द जानती है इसीलिए लाखों का मुआवजा बांटती है

 जब किसी अपराधी की सजा में २० साल लग जाते है पीड़ित तब भी कहता है हम संविधान मानते है
 उसके कई साल सिर्फ उम्मीद में में गुजर जाते है जहाँ से चले थे खुद को वहीँ खड़ा पाते है
 जब किसी बेरोजगार के तलवे घिस चुके होते है इस साल सरकार कुछ करेगी यही शब्द उसके मुख पर होते है

 दुनिया की झंझावतों से लड़ना सीख नहीं पाते है और एक दिन वो खुद को हम से बहुत दूर कर जाते है

 क्या हम इतने निरीह और असहाय हो गये है अभी जाग रहे है या सो गये है
 क्या अब हम अतीत से कुछ सीख रहे है या सत्ता बेगैरतों को देकर निश्चिन्त हो गये है
 सब कुछ होते हुए भी भिखारी का पेट नहीं भर सकते किसी को अनायास विधवा बनने से रोक नहीं सकते

 किसी सताए हुए की इन्साफ नहीं दिला सकते या किसी बेरोजगार की रोटी का इंतजाम नहीं कर सकते ये बात जो मुझे सालती है खुद से या शायद हम सब से यही जवाब मांगती है

ये भूक इन्सान कि













डाइनिंग टेबल पर खाना देखकर बच्चा भड़का फिर वही सब्जी,रोटी और दाल में तड़का....?
 मैंने कहा था न कि मैं पिज्जा खाऊंगा रोटी को बिलकुल हाथ नहीं लगाउंगा ...
 बच्चे ने थाली उठाई और बाहर गिराई.......? -------
 बाहर थे कुत्ता और आदमी दोनों रोटी की तरफ लपके .......?
 कुत्ता आदमी पर भोंका आदमी ने रोटी में खुद को झोंका और हाथों से दबाया कुत्ता कुछ भी नहीं समझ पाया

उसने भी रोटी के दूसरी तरफ मुहं लगाया दोनों भिड़े जानवरों की तरह लड़े एक तो था ही जानवर,
 दूसरा भी बन गया था जानवर.....
 आदमी ज़मीन पर गिरा, कुत्ता उसके ऊपर चढ़ा कुत्ता गुर्रा रहा था और अब आदमी कुत्ता है
या
 कुत्ता आदमी है कुछ भी नहीं समझ आ रहा था नीचे पड़े आदमी का हाथ लहराया,
हाथ में एक पत्थर आया कुत्ता कांय-कांय करता भागा........
आदमी अब जैसे नींद से जागा हुआ खड़ा और लड़खड़ाते कदमों से चल पड़ा.....
 वह कराह रहा था रह-रह कर हाथों से खून टपक रहा था बह-बह कर आदमी एक झोंपड़ी पर पहुंचा....... झोंपड़ी से एक बच्चा बाहर आया और ख़ुशी से चिल्लाया आ जाओ, सब आ जाओ बापू रोटी लाया,
 देखो बापू रोटी लाया, देखो बापू रोटी लाया.............

Monday, September 5, 2011

मे भी इन्सान हि हु


Kabhi uski zindagi kash par atki hai, 

 To kabhi Aasman tak bhi na simati hai.

 Kabhi khushi me kehta zindagi ke din char hain,

 To kabhi dukh me kehta waqt ke aage laachar hain.

 Kabhi bhid me bhi lagti usko tanhai hai, 

 To kabhi akele hokar bhi usne mehfil jamai hai.

 Kabhi roshni me bhi usko dar sa lagta hai, 

 To kabhi raat me bhi bekhauf phira karta hai

. Kabhi dhundhne se usko bhagwan bhi milta hai,

 To kabhi samne rakha mauja bhi aankho se fisalta hai.

 Kabhi khushi me bhi uski aankho me nami hai,

 To kabhi dard me bhi hansi ki nahi kami hai.
 Kabhi sitaron pe karta vishwas hai,

 To kabhi lakiron ko kehta bakwas hai.

 Kabhi har dard ko chupchap seh leta hai,

 To kabhi man ki har bat ko bebak keh deta hai.

 Kabhi zindagi parivar, mohabbat or yaari hai,

 To kabhi paisa in sab par bhari hai.

 Kabhi hindu to kabhi musalmaan hai,
 To kabhi insaaniyat hi uska deen-imaan hai.

 Kabhi har subah naya safar hai, o kabhi naa koi shaam na hi sahar hai. 

 Kabhi purani bataon ko yaad kar tasveeren nihar leta hai.
 To kabhi apne har ehsaas ko kagaz par utar deta hai 
 BUS YE INSAN HI TO HAI JO PATHAR KO BI KABHI BHAGWAN BANA DETA HAI

Monday, July 11, 2011

Monday, April 18, 2011

Kaash ,my words from safroon heart BY ANSH

                         कागज की संज्ञा

 

कोरा हु में अभी लेखन  का आभारी

भटका  हु में  कोई कश्ती बंजारी

अधूरे से है किसी लेखक के खवाब

प्रष्टो पे छिपे है किसी हस्ती  के जज्बात

विचारो के कमरे में होती है कोई बात

इस बरबस दुनिया को देख कर रूती है कागज की आँख

 

रंगों से सजी है खबरे हजार पर लेती है रिश्वत ये झोली उधार

शब्दों में भिखरी है किस्मत निखार पर पैसा  ही बोला हु में रद्दी बेकार

 

अभी कोरा हु में अभी लेखन का आभारी  पर भटका हु में ये कश्ती बंजारी !!!!
!!

                                         =अंश